ना समानता आई ना जातिवाद समाप्त हुआ फिर आरक्षण क्यों समाप्त करना चाहते : बुटोइया

देहरादून : अनुसूचित जाति जनजाति शिक्षक एसोसिएशन उत्तराखंड के प्रांतीय अध्यक्ष संजय भाटिया एवं प्रांतीय महामंत्री जितेंद्र सिंह बुटोइया ने देश के प्रधानमंत्री एवं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित कर उक्त सवाल किया है।

प्रांतीय महामंत्री जितेंद्र सिंह बुटोइया ने बताया कि 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड ने कम्युनल अवार्ड की घोषणा की थी जिसमें डिप्रेस्ड क्लास को अलग निर्वाचन क्षेत्र एवं 2 वोट का अधिकार दिया गया था किंतु इसके विरोध में जातिगत व अस्पृश्यता के आधार पर 24 सितंबर 1932 को “पूना पैक्ट” में समानता आने तक प्रतिनिधित्व अर्थात आरक्षण दिया गया है।

इसके परिपेक्ष में एसोसिएशन का सवाल है कि ना तो कभी समानताएं और ना ही जातिगत भेदभाव समाप्त हुआ तो तब एससी एसटी वर्ग के आरक्षण का ही विरोध क्यों होता है ? बाकी तरह के जो आरक्षण चल रहे हैं जिसमें महिला आरक्षण , स्वतंत्रता आंदोलन कारियों का आरक्षण , सवर्णों को 10% आरक्षण , दिव्यांग आरक्षण व खेल कोटे का आरक्षण आदि का विरोध कोई नहीं करता है। केवल एससी एसटी के ही आरक्षण का विरोध क्यों ? “पूना पैक्ट” के वादे के अनुरूप भारतीय संविधान में समता और समानता के अवसर दिए जाने का जो प्रावधान किया गया ।

उससे लगभग 50 वर्षों में कुछ समानता आंशिक रूप से दिखने लगी थी, लेकिन सवर्णों द्वारा इस समानता को न तो सहन किया जा रहा है और ना ही इसको देख पा रहे हैं , इससे यह साबित होता है कि सवर्ण जाति समानता चाहती ही नहीं है, उनके अंदर मानव- मानव को एक समान मानने की भावना हजारों वर्षों से नहीं रही है यही सवाल आज मानवता के सामने हैं।

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