मनुष्य को धर्माचरण सिखाती है स्मृतियां
स्मृति ग्रंथों का महत्व सनातन धर्म में बहुत रहा है। इनकी संख्या 18 है। इन्हें मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत, यम, याज्ञवल्क्य, अंगिरा, शनि, संवर्तक, कात्यायन, शाण्डिल्य, गौतम, वशिष्ठ, दक्ष, वृहस्पति, शातातप, पराशर तथा क्रतु, 18 ऋषियों ने लिखा है। अब सवाल यह उठता है कि स्मृति ग्रंथ किसलिए लिखे गए? मनुष्य धर्म के अनुसार जीवन यापन करे, आशा-तृष्णा के बंधन से मुक्त हो, शुद्ध आचरण रखे, नीति-अनीति के विषय में जान कर निर्णय ले सके; देव, पितृ, अतिथि, गुरु आदि के विषय में अपने कर्तव्य के अनुसार रहे; सबके प्रति सदैव अच्छा व्यवहार करे, यही स्मृति ग्रंथों का मुख्य उद्देश्य रहा है।
प्राधान्यं हि मनो: स्मृतम’ अर्थात सभी स्मृतियों में मनुस्मृति प्रधान स्मृति है। राजर्षि मनु द्वारा यह 12 अध्यायों में लिखी गई है। अत्रि स्मृति महर्षि अत्रि ने लिखी, जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। इनकी गिनती सप्तर्षियों में भी होती है। कर्दम प्रजापति की पुत्री देवी अनुसूया इनकी पत्नी हैं। विष्णु स्मृति वैष्णव धर्मशास्त्र के रूप में भी प्रसिद्ध है। इसमें 100 अध्याय हैं। हारीत स्मृति महर्षि हारीत ने लिखी है। इनकी तीन स्मृतियां- हारीत स्मृति, लघु हारीत स्मृति तथा वृहद हारीत मिलती हैं। यम स्मृति सूर्य और संक्षा के पुत्र धर्मराज यम ने लिखी है, जिसमें प्रायश्चित संबंधी विधान मिलता है। इनकी इसके अलावा लघु यम स्मृति और बृहद यम स्मृतियां भी मिलती हैं। रामकथा के महान प्रवक्ता याज्ञवल्क्य ने आचार, व्यवहार तथा प्रायश्चित नामक तीन अध्याय में याज्ञवल्क्य स्मृति लिखी है।
अंगिरा स्मृति अथर्ववेद के प्रवर्तक महर्षि अंगिरा ने लिखी, जिसमें गृहस्थाश्रम के सदाचार, गोसेवा, पंच महायज्ञ तथा प्रायश्चित्त विधान का वर्णन किया गया है। शनैश्चर स्मृति सूर्य पुत्र शनि ने लिखी है। काशी को पसंद करने वाले संवर्त ने इसमें वर्णाश्रम धर्म, प्रायश्चित, गायत्री जप और दान के विषय में विस्तार से लिखा है। इसी तरह ऋषियों ने अन्य स्मृतियों में प्राचीन भारतीय व्यवहार, विधि नियम, धर्मव्यवस्था, धर्माचरण की महिमा, तीर्थ महिमा आदि का विशद् वर्णन किया है। .