कोलकाता रेप-मर्डर केस: प्रशासनिक कमजोरियों पर फिर उठे सवाल

निर्भया कांड के 12 वर्ष बाद भी देश की स्थिति जस की तस

कोलकाता/नई दिल्ली। दिल्ली में हुए निर्भया कांड को 12 साल बीत चुके हैं, लेकिन महिला सुरक्षा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। कोलकाता में हाल ही में हुए रेप और मर्डर केस ने एक बार फिर भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। इस मामले ने न केवल पश्चिम बंगाल में बल्कि पूरे देश में हड़कंप मचा दिया है।

ममता बनर्जी की सरकार पर सवाल

कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई इस घटना ने पश्चिम बंगाल की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान कि “पश्चिम बंगाल में आग लगाने की साज़िश हो रही है,” से राज्य की स्थिति और अधिक गंभीर हो गई है। इस मामले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी अपनी चिंता व्यक्त की है, जिससे घटना की गंभीरता और बढ़ गई है।

राजनीतिक माहौल और मीडिया की भूमिका पर संदेह

दिल्ली के निर्भया कांड की तरह, इस मामले को भी मीडिया और राजनीतिक दलों द्वारा तूल दिया जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसी घटनाओं को जरूरत से ज्यादा तूल देकर अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है? कोलकाता रेप-मर्डर केस के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं, जिससे आम जनता में भय और चिंता का माहौल है।

प्रशासनिक जिम्मेदारी और जवाबदेही का अभाव

पश्चिम बंगाल सरकार की प्रशासनिक कमजोरी इस मामले में साफ नजर आ रही है। राज्यपाल सीवी आनंद बोस के दिल्ली जाने के बाद से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अटकलें भी जोर पकड़ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांता मजूमदार ने राज्यपाल से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल में संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने की अपील की है।

ममता बनर्जी पर दबाव और विपक्ष की भूमिका

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर इस घटना के बाद दबाव बढ़ता जा रहा है। उनकी सरकार के खिलाफ आम जनता और विपक्ष के दलों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सरकार की निष्क्रियता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था और प्रशासनिक अनियमितताओं के चलते ममता बनर्जी पर विपक्ष के साथ-साथ उनकी ही पार्टी में भी असंतोष बढ़ रहा है।

भविष्य की राह और संभावनाएं

यह घटना एक बार फिर इस बात की पुष्टि करती है कि हमारे महानगरों में महिला सुरक्षा के प्रति गंभीरता का अभाव है। चाहे दिल्ली हो या कोलकाता, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति प्रशासनिक विफलताओं का परिणाम है। इस मामले ने यह सवाल उठाया है कि क्या हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था वास्तव में प्रभावी है, या इसे बेहतर बनाने के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत है?

सार्वजनिक आक्रोश और संभावित समाधान

आम जनता का आक्रोश और प्रशासनिक जवाबदेही की मांग इस घटना के बाद और भी तीव्र हो गई है। अब देखना यह है कि क्या इस घटना के बाद प्रशासन और सरकारें जागेंगी और ठोस कदम उठाएंगी, या फिर यह मामला भी बाकी घटनाओं की तरह समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा।

कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार

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