हरिद्वार में पंचायत चुनाव निबटे, भाजपा को 44 सदस्यों की जिला पंचायत में 14 सीटों पर मिली जीत
हरिद्वार में पंचायत चुनाव निबटे, भाजपा को 44 सदस्यों की जिला पंचायत में 14 सीटों पर मिली जीत
देहरादून : हरिद्वार भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है, लेकिन विधानसभा चुनाव में यहां पार्टी को झटका लगा। चौथी विधानसभा में जिले से भाजपा के आठ विधायक थे, लेकिन पांचवीं विधानसभा में यह आंकड़ा तीन ही रह गया। इसकी पूरी कसर पार्टी ने जिला पंचायत चुनाव में निकाल दी।
हरिद्वार में पंचायत चुनाव निबटे, परिणाम आए तो भाजपा को 44 सदस्यों की जिला पंचायत में 14 सीटों पर जीत मिली। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद हरिद्वार जिला पंचायत चुनाव में यह पार्टी का सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन रहा।
बहुमत के 23 के आंकड़े से यद्यपि भाजपा कुछ दूर रह गई, लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ, वह खासा दिलचस्प था। कांग्रेस, बसपा खेमे से जीते प्रत्याशियों के साथ ही निर्दलीय भी, सब सरपट भाजपा की ओर दौड़ पड़े। मतगणना समाप्त भी नहीं हुई थी कि बहुमत से नौ कदम पीछे छूट गई भाजपा सीधे 10 कदम आगे 33 तक जा पहुंची।
प्रतीक्षा है कि अब भी खत्म होती नहीं
सत्तारूढ़ भाजपा के विधायकों और कार्यकर्त्ताओं की लंबी प्रतीक्षा समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही है। विधायकों की नजर मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल या विस्तार पर टिकी है। मंत्रिमंडल में तीन स्थान रिक्त हैं और अगर कुछ मंत्री बदले गए तो दो-तीन सीट अन्य खाली हो सकती हैं। ऐसा ही कुछ कार्यकर्त्ताओं के साथ भी है।
विभिन्न विभागों के अंतर्गत समितियों, परिषदों और आयोगों के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद पर उनकी नजरें हैं। ये कैबिनेट या राज्य मंत्री स्तर के पद हैं, जिन पर ताजपोशी के बाद तमाम सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब भी दिल्ली दौरे पर जाते हैं, चर्चा शुरू हो जाती है कि लौटते ही नए मंत्री बनेंगे और कार्यकर्त्ताओं को मंत्री पद वाले दायित्व बांट दिए जाएंगे। नई सरकार को छह महीने से अधिक समय हो चुका और मुख्यमंत्री के कई दिल्ली दौरे भी, मगर प्रतीक्षा खत्म होती नहीं।
हरदा चल दिए दिल्ली, 2024 में फिर लौटेंगे
उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश की राजनीति का मोह छोड़ दिया है। पार्टी की कमान अब नई पीढ़ी के पास है और पिछले कुछ महीनों से साफ दिख रहा था कि वह संगठन के साथ कदमताल नहीं कर पा रहे। इंटरनेट मीडिया में एक इमोशनल पोस्ट कर हरदा ने जो लिखा, उसका सार यह था कि अब वह प्रदेश की राजनीति से विश्राम लेकर दिल्ली में सक्रिय रहेंगे।
वैसे वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी उन्हें हाईकमान ने केंद्रीय संगठन में अहम जिम्मेदारी सौंप पहले असम, फिर पंजाब का प्रभारी बनाया। इस वर्ष की शुरुआत में उन्होंने हाईकमान से अनुमति लेकर उत्तराखंड का रुख किया और कांग्रेस चुनाव अभियान का नेतृत्व करते नजर आए, लेकिन हार का सिलसिला कहां पीछा छोडऩे वाला। मतलब, फिलहाल दिल्ली में राजनीति और वर्ष 2024 के चुनाव से पहले घरवापसी तय।
चश्मा जरूर पहना है, लेकिन नजर नहीं कमजोर
हरदा के दिल्ली की राह पकड़ते ही कांग्रेस की अंदरूनी कलह चरम पर पहुंच गई है। पार्टी यूं तो पहले से ही कई धड़ों में बंटी है, लेकिन अब पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा आमने-सामने आ गए हैं। प्रीतम ने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर उत्तराखंड से गायब रहने का तंज कसा, तो माहरा ने पलटवार कर दिया। बोले, विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश प्रभारी तीन बार यहां आए, लेकिन उनकी बैठकों में प्रीतम नहीं पहुंचे।
हरिद्वार पंचायत चुनाव को लेकर दिल्ली में हुई बैठक से भी वह नदारद रहे। माहरा आगे बोले कि जिन व्यक्तियों ने चश्मा ही ऐसा पहन लिया है कि प्रभारी नहीं दिखाई देते, उनके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। प्रीतम का भी तुरंत जवाब आया कि वह चश्मा जरूर पहनते हैं, लेकिन उनकी नजर कमजोर नहीं है। विषम परिस्थितियों में जब सेनापति गायब रहेगा तो पार्टी कैसे संभलेगी।