आल इंडिया बैंक एम्पलाईज एसोसिएशन की मांग,बैंक के बकाएदारों को चुनाव लड़ने से रोके l

राजनीतिक दलों द्वारा अपने घोषणापत्र में शिक्षा ऋणों को माफ करने के आश्वासन को एक शीर्ष बैंकिंग निकाय ने अवांछनीय करार दिया है। उसने चुनाव आयोग से आग्रह किया है कि वह चुनाव उम्मीदवारों से एक वचनपत्र लें, जिसमें यह कहा गया हो कि वे बैंक के बकाएदार (कर्ज न चुकानेवाले) नहीं हैं।

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के एक शीर्ष अधिकारी ने चुनाव आयोग से यह अधिसूचित करने की मांग की है कि बैंक कर्ज बकाएदार लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं। एआईबीईए ने यह भी कहा कि कर्ज बकाएदारों को कोई भी सरकारी पद रखने के लिए अयोग्य बनाया जाना चाहिए। संघ ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने की योजना बनाई है, जिसके तहत यह घोषित किया जाए कि सभी सार्वजनिक क्षेत्र की पदोन्‍नत कंपनियों के लिए नौकरी आरक्षण नियम लागू होंगे।

‘शिक्षा ऋणों को भी नया रूप दिया जाना चाहिए’

एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटाचलम ने सोमवार को बताया, ‘किसी भी प्रकार की कर्जमाफी अवांछनीय है, क्योंकि यह उधारकर्ताओं को एक गलत संकेत देगी।’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब अर्थव्यवस्था अच्छा नहीं कर रही हो और कॉर्पोरेट ऋणों को नया रूप दिया गया हो तो शिक्षा ऋणों को भी नया रूप दिया जाना चाहिए। अगर उधारकर्ता नौकरी पाने में सक्षम नहीं है तो। जब कॉर्पोरेट ऋणों को नया रूप दिया जा सकता है तो वैसा ही छात्र उधारकर्ताओं के साथ भी किया जा सकता है।’

‘895,600 करोड़ रुपये का कर्ज नहीं चुका पाए लोग’

बता दें कि इस बार के चुनावों में एआईडीएमके और डीएमके जैसे राजनीतिक दलों ने वादा किया है कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो शिक्षा ऋणों को माफ कर देंगे। वेंकटाचलम ने कहा कि 31 मार्च, 2018 तक करीब 895,600 करोड़ रुपये का कर्ज लोग नहीं चुका पाए हैं। संघ बैंक ऋण बकाएदारों के नाम प्रकाशित करने और उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग कर रहा है, लेकिन इसका अभी तक कोई फायदा नहीं हुआ है।

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