देहरादून : उच्च शिक्षा कल्याण परिषद द्वारा उठाई स्ववित्त पोषित संस्थानों की पीड़ा।
देहरादून : उच्च शिक्षा कल्याण परिषद उत्तराखण्ड का एक प्रतिनिधि मंडल आज उच्च शिक्षा मंत्री डा0 धन सिंह रावत से मिला जिसमें उन्होंने उच्च शिक्षा के उन्नयन हेतु अनेक बिंदुओं पर मंत्री का ध्यान आकर्षित किया। परिषद के अध्यक्ष एडवोकेट ललित जोशी ने बताया कि शासन के उच्च शिक्षा अनुभाग से 14 दिसम्बर 2016 को एक शासनादेश जारी हुआ जिसमें कई ऐसे फैसले लिए गए है जिससे राज्य विश्विद्यालय से सम्बद्ध संस्थानों के के लिए एक संकट खड़ा हो गया है और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षा विदों को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है। परिषद के अध्यक्ष ललित जोशी ने यह भी बताया कि शासन के उक्त पत्र में कॉलेज खोलने की प्राभुति राशि जो पहले 50 हजार से 3 लाख तक थी अब सीधे 15 लाख से 35 लाख प्रति कोर्स तक कर दी गयी है और भूमि के मानकों को भी 5 एकड़ कर दिया है जो कि पूर्व में एक एकड़ थे। जिससे राज्य में संचालित कई कॉलेजों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। जिसके फलस्वरूप शासन, विश्विद्यालय और राजभवन स्तर से सैकड़ों संस्थाओं के संबद्धता पर तलवार लटकी है जिससे राज्य के हजारों छात्रों का भविष्य भी अंधकार की ओर जा रहा है। इस स्थिति में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षाविदों को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है अपितु इन नियमो को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उक्त मानकों को केवल खनन-भू-आबकारी-रियलस्टेट कारोबारी वर्ग ही पूर्ण कर सकते है। उत्तराखण्ड के भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए जहाँ आज भी ब्यवसायिक शिक्षा की अति आवश्यकता है वही शासन स्तर के इस प्रकार के फैसले सरकार को ही कटघरे में खड़ा करने का काम कर रही है। सरकार जहा सिंगल विंडों के माध्यम से बाहरी लोगों को उत्तराखंड में ब्यवसाय करने और उत्तराखंड में रोजगार उपलब्ध करने के लिए इनवेस्टरों को आमंत्रित कर रही है वही राज्य में शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहे स्ववित्त पोषित संस्थाओं के साथ इस प्रकार मानसिक , आर्थिक दबाब देना समझ से परे है, क्योंकि आज भी उत्तराखण्ड में 300 से अधिक स्ववित्त पोषित कॉलेजों के खुलने के फलस्वरूप राज्य के इस संस्थाओं में लगभग 30 हजार से अधिक कर्मचारी जॉब कर रहे है और अन्य हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है और राज्य से लाखों युवाओं को शिक्षा के लिए पलायन नही करना पड़ रहा है। प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों ने सेमेस्टर प्रणाली का भी पुरजोर तरीके से विरोध करते हुए कहा कि राज्य की भौगोलिक परिस्थिति को हुए पूर्व की भांति केवल वार्षिक परीक्षा प्रणाली ही लागू की जाये जिससे सभी छात्र छत्राओं को समान रूप से शिक्षा का अधिकार मिल सके। हालांकि उच्च शिक्षा मंत्री ने इन सभी मामले का तत्काल निवारण का भरोसा दिया है।
इस दौरान ज्ञापन देने वालों में परिषद के सचिव निशांत थपलियाल, उपाध्यक्ष संदीप चौधरी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष छबील सिंह, सलाहकार हरीश अरोड़ा सहित अनेक कालेजों के प्रबंधक मौजूद रहे।