सत्ता धारी पार्टी को छोड़ उक्रांद में सम्मिलित हुए : संजय बहुगुणा।

देहरादून :  भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर जुड़ने वाले संजय बहुगुणा का प्रचंड बहुमत के साथ प्रदेश में डबल इंजन का काम कर रही सरकार और पार्टी दोनों से हुआ मोहभंग। वे एक ऐसे कर्मठ कार्यकर्ता हैं जिन्होंने अपना नफा नुकसान को दरकिनार कर सदैव समर्पित भाव से पार्टी के लिए निष्ठा भाव से कार्य किया, उन्होंने आज क्षेत्रीय दल उक्रांद के प्रदेश अध्यक्ष दिवाकर भट्ट के हाथों पार्टी में सदस्यता ग्रहण कर उनका उक्रांद में फूल मालाओं से भव्य स्वागत किया गया, लगभग 30 वर्ष से भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता विभिन्न संगठनों में उनकी अहम भूमिका रही ।

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स्पर्श गंगा की देहरादून में अलख जगाने का कार्य भी उन्होंने ही किया बेशक वह अभियान डॉ0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का रहा हो लेकिन देहरादून में हरेक रविवार स्वयं सेवकों की टीम वर्क के साथ संजय बहुगुणा नेतृत्व करते हुए देहरादून के हरेक स्थानों पर अभियान चलाते दिख जाते थे। यहां तक उन्होंने  इसे नई सोच के साथ अपने साथियों के साथ मिलकर स्कूलों में भी जनजागरुकता की शपथ अभियान के रुप में भी चलाया।उन्होंने विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में ब्लड डोनेशन कैंप भी लगवाए उनकी प्राथमिकता सदैव आमजन को लाभान्वित करने की रही। अब उनके कामों को क्यों न कोई नया नाम दे दे लेकिन उन्होंने अपने मूल स्वभाव के साथ कभी किसी किस्म का समझौता नहीं किया और सदैव अनवरत चलते रहने में ही विश्वास किया।

उन्होंने क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने वाले दल को अपनी पहली पसंद चुना और उसकी सदस्यता लेकर उत्तराखंड को मजबूत करने की दिशा में काम करना शुरु कर दिया है। आज से वे क्षेत्रीयता के परचम को लहराने पर जोर देने का काम करेंगे, वे कहते हैं कि उन्होंने सोच समझ कर ही ये निर्णय लिया है और इस दिशा में दल के जो भी संभव होगा एक कार्यकर्ता की हैसियत से उसका निर्वहन पूरी निष्ठा से करेंगे।

स्वागत समारोह में पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष दिवाकर भट्ट समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे। उनके स्वागत में हाल ही में पत्रकारिता से राजनीति में आए शिव प्रसाद सेमवाल ने भी नए साथी के स्वागत में कोई कमी नहीं छोड़ी। उन्होंने भी फूल माला से जबरदस्त स्वागत किया। बहुगुणा कहते हैं कि क्षेत्रीय दल में शामिल होकर उन्हें ऐसा लगा कि जैसे वे क्षेत्रीय दल के लिए ही बने थे। क्योंकि सत्ता धारी दल की विचारधारा से उनका मोहभंग हो चुका था और वे प्रतीक्षा कर रहे थे वक्त की, कि सही समय पर क्यों न सही निर्णय लिया जाए अंततः उन्होंने उस पर मुुहर लगा ही दी।

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