राज्य आन्दाेलनकारी शक्तियाें की एकजुटता का अब भी अवसर।

देहरादून : उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दाेलन के पुराेधा और राज्य निर्माण के बाद राज्य के सभी प्रकार के हित सराेकाराें के लिए हर दिन, हर पल-पल, छण-छण सचेत, जागरूक और सक्रिय व्यक्तित्व जेपी पाण्डेजी का गत वर्ष सड़क हादसे में दु:खद निधन हाे गया था।

वे आन्दाेलनकारियाें की मशाल काे प्रज्ज्वलित रखते और उनकी भूमिका के महत्व के लिए भी संघर्षशील रहते। लेकिन ऐसा वे बड़े नेतृत्व के साथ नहीं कर पाये और इसके लिए उन्हें अलग संगठन जैसे उत्तराखण्ड क्रांति मंच, राज्य आन्दाेलनकारी संघर्ष समिति आदि कई अलग अलग संगठन बनाने पड़े क्याेंकि दुर्भाग्य से राज्य निर्माण के बाद आन्दाेलनकारी शक्तियाें में विभिन्न कारणाें से विखराव हाे गया और राज्य का नेतृत्व राष्ट्रीय दलाें ने सम्भाल लिया जिनकी राज्य निर्माण में अपेक्षाकृत काेई उल्लेखनीय भूमिका नहीं थी।

पूर्व कुलपति स्व० डॉ० डीडी पंत और स्व० इन्द्रमणि बड़ाेनी जी ने प्रारम्भ में आन्दाेलन काे एक व्यवस्थित धार दी और दिवाकर भट्ट, काशीसिंह ऐरी आदि अग्रिम पंक्ति के याेद्धा बने। काशीसिंह लगभग 18 वर्षाें तक उप्र विधान सभा के सदस्य भी रहे। धीरे धीरे उत्तराखण्ड क्रांति दल के नेतृत्व या समर्थन में पूरा राज्य ही नहीं प्रवासी उत्तराखण्डी भी जुड़ गये।
आन्दाेलन के पर्याय बने दिवाकर भट्ट फिल्ड मार्शल के सम्बाेधन से प्रसिद्ध हाे गये। वे स्वंय हरिद्वार में पहाड़ हिताें के रक्षक तरूण हिमालय प्रसिद्ध संस्था के अध्यक्ष भी थे और सतीश जाेशी, जेपी पाण्डे, जगतसिंह रावत आदि अनेक बड़ी संख्या में लाेग साथ-साथ राज्य आन्दाेलन का नेतृत्व करते थे। महिलाओं में लज्जावती नाैटियाल, देवेश्वरी गैराेला आदि सैकड़ाें महिला नेत्री थीं।

त्रिलाेक चन्द्र भट्ट ने आन्दाेलन में सहभागिता के साथ साथ आन्दाेलन का इतिहास लिखने का भी गुरूत्तर कार्य किया। गाेपाल रावत आदि ने भी आन्दाेलन सहित लेखकीय कार्याें में बड़ी भूमिका निभाई। लेकिन आश्चर्य कि राज्य प्राप्ति के बाद पूरे राज्य के साथ-साथ हरिद्वार में भी मुख्य आन्दाेलनकारी अलग अलग धड़ाें में बंट गये। अलग अलग बैनर लगने लगे।

दिवाकर भट्ट प्रदेश में कैविनेट मंत्री ताे बने लेकिन आन्दाेलनकारियाें काे जाेड़ कर नहीं रख पाये। सतीश जाेशी ने हरिद्वार विधान सभा से राज्य विधायिका का चुनाव लड़ा लेकिन कई समीकरणाें के चलते उनका मार्ग प्रशस्त नहीं हाे सका। अपने आप किसी ने एकजुटता बनाये रखने का मंत्र साधा नहीं। किसी अन्य ने भी राज्य हितार्थ मेल जाेल कराने का बड़ा प्रयास भी किया नहीं । किया भी हाेगा ताे बे-मन से किया। राष्ट्रीय दलाें की ताकतेें इन्हें एक देखना भी नहीं चाहती थी। और अपना अहं ये छाेड़ नहीं पाये। अपने में से किसी का सर्वमान्य नेतृत्व स्वीकार नहीं कर पाये।
हां हरिद्वार में अवश्य इन पंक्तियाें के लेखक ने जेपी पाण्डे और सतीश जाेशी काे एक मंच पर लाने का भरषक प्रयास किया था। एक दाे बार अपने कनखल स्थित निवास में बैठकें भी करवाई।

एक उद्देश्य हाेने के कारण समझाैते के लिए दाेनाें पुराेधा सहमति दे देते लेकिन फिर कुछ दिनाें बाद ही अलग अलग ढपली और राग अलापने लग जाते। एक ही शहर में एक ही उद्देश्यपूरित कार्यक्रम के लिए एक ही विषय पर अलग बैनर लगने शुरू हाे जाते। फिर जेपी पाण्डे प्रचार प्रसार में बहुत आगे निकल जाते। उनकी सक्रियता बेजाेड़ थी। एकदम काबिले तारीफ। अब क्याेंकि वह पुराेधा ईश्वर काे प्यारा हाे गया है। उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि यह हाेगी कि पूरे प्रदेश की राज्य आन्दाेलनकारी शक्तियां एक हाे जांय। राज्य की सत्ता पर आन्दाेलनकारियाें का नैतिक और पुरूषार्थी अधिकार भी बनता है लेकिन लाेकतन्त्र संगठनात्मक काैशल से संचालित हाेता है। सत्ता न भी हाे ताे सत्ता काे सही दिशा देने के लिए आन्दाेलनकारियाें का एक मंच पर आना आवश्यक है ताकि राज्य काे सही दिशा, प्रगति के विविध आयाम मिलें और शहीद आन्दाेलनकारियाें के सपने हरियाली में बदलें।

जेपी पाण्डेजी काे पुन: श्रद्धांजलि के साथ यह अवश्य उल्लेख करना चाहूंगा कि वर्तमान में राज्य पुनर्गगठन में प्रचण्ड आन्दाेलन के गर्भ से प्राप्त उत्तराखण्ड राज्य में कुछ अन्य जिलाें काे सम्मिलित करने की जाे सुगबुगाहट है ताे इसके विराेध में अब तक वे झंण्डा-बैनराें के साथ सड़क पर हाेते और सरकार काे संदेश दे चुके हाेते।
डॉ० हरिनारायण जाेशी “अंजान”

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