भाजपा सरकार के फैसले से सहमत नहीं, आर पार को है तैयार लेकर रहेंगे वनाधिकार l

देहरादून : आज दिनांक 18 नवंबर 2019 को प्रेस क्लब देहरादून में जन हस्तक्षेप द्वारा एक प्रेस वार्ता आयोजित किया गया, जिसमें 2019 में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने दो बड़े नीतिगत कदम उठाये है जिससे 10 करोड़ से ज्यादा जंगल में रहनेवाले और ख़ास तोर पर उत्तराखंड वासियों के परंपरागत हक़ खतरे में आ गए है ।

2017 से फरवरी 2019 तक केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में वन अधिकार कानून के खिलाफ चल रही याचिका में खामोश रही, जिससे कोर्ट में याचिका कर्ताओं के झूठ का जवाब देने के लिए कोई भी आवाज़ नहीं उठाया गई, जिसकी वजह से विगत 13 फरवरी को कोर्ट ने लाखों परिवारों को बेदखल करने को आदेश दिया था । उत्तराखंड में भी सैकड़ों परिवार बेदखली के खतरे में थे मगर देश भर आंदोलन होने के बाद केंद्र सरकार कोर्ट में फिर से जाने के लिए मज़बूर हुई। तब भी उन्होंने न्यायपीठ से यह माँग नहीं की कि उक्त आदेश वापस लिया जाये।सरकार का सिर्फ ये मांग थी कि आदेश को कुछ समय के लिए स्थगित किया जाये। आज तक आदेश स्थगित अथवा पेंडिंग में है और लटकती तलवार के रूप में लोगों के सर के ऊपर मंडरा रहा है। 12 सितम्बर को फिर से इस याचिका में सुनवाई हुई थी और केंद्र सरकार फिर से गैर हाजिर रही। इस याचिका में अगली सुनवाई 26 नवंबर को होने वाली है। याद रखने की बात है कि उत्तराखंड में भी आज तक एक भी गांव को अधिकार पत्र नहीं मिला है ।

10 मार्च 2019 को केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को एक पत्र द्वारा भारतीय वन कानून में संशोधन करने के लिए प्रस्ताव भेजा था। इस प्रस्ताव के अनुसार सरकार वन विभाग को अधिकार देने चाह रही थी कि वे वन रक्षा के नाम पर गोली चला सकते हैं और अगर वे स्पष्ट करते हैं कि गोली कानून के अनुसार चलाई गयी है तो उनके ऊपर जज की जांच के बिना मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता है (धारा 66 (2))। अगर प्रस्तावित संशोधन कानून बन जायेगा तो वन विभाग के कर्मचारी गांव के किसी भी वन अधिकार को पैसे दे कर ख़त्म कर सकेंगे (22A(2), 30(b)), बिना वारंट गिरफ्तार या छापे मार सकेंगे। शताब्दियों से उत्तराखंडियों ने पहाड़ों और जंगलों का संरक्षण किया है। देश भर से इसके खिलाफ आवाज़ उठने से केंद्र सरकार ने अभी 15 नवंबर को घोषित कर दिया कि इस प्रस्ताव को वापस लिया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि छ महीनों से इस प्रस्ताव को जारी रखने के बजाय सरकार को लोगों के वन अधिकारों को मान्यता देना चाहिए थी। इस काम के लिए सबसे पहले उत्तराखंड सरकार को आवाज़ उठाना चाहिए।

उक्त मुद्दों पर देश में अन्य राज्यों में कल और आज बड़े धरना, प्रदर्शन हुए है, इसपर देहरादून और पहाड़ी इलाकों में हस्ताक्षर अभियान भी किया जा रहा है और दिसंबर में प्रदर्शन भी निकाला जायेगा।

इस अवसर पर उपस्थित कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के Com समर भंडारी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के Com बची राम कंसवाल, समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्य अध्यक्ष डॉ डी एस सचान, चेतना आंदोलन से शंकर गोपाल और वन अधिकार जन आंदोलन से प्रेम बहुखंडी ने प्रेस वार्ता को सम्बोधित किया ।

Jan Hastakshep

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