सियासी साज़िश का शिकार हुए पर्वतजन के संपादक : एस.पी. सेमवाल l
देहरादून : उत्तराखंड में पत्रकारिता को एक अलग मुकाम तक पहुँचाने और कभी किसी के आगे न झुकने वाले इंसान कम ही हैं। ऐसे ही कुछ लोगों से हमने पत्रकारिता सीखी तो कुछ ऐसे ही लोगों को हमने काम करते देखा भी है। इन लोगों को जब हम काम करते देखते हैं तो लगता है कि हम लोग तो सिर्फ पत्रकारिता में समय ही बर्बाद कर रहे हैं। ऐसे ही एक इंसान है पर्वतजन के सम्पादक तथा उत्तराखंड वेब मीडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष शिव प्रसाद सेमवाल। उत्तराखंड में शायद ही ऐसा कोई पत्रकार हो जो इनके बारे में न जनता हो, ऐसा ही हाल राजनेताओं का भी है और शासन से जुड़े अधिकारीयों का भी।
काफी लम्बे समय से अपनी कलम के दम पर प्रदेश के बड़े-बड़े घोटालों का खुलासा करने के लिए शिव प्रसाद सेमवाल चर्चा में बने रहते हैं। उनके ऐसे कार्यों को लेकर आम जनता तो खुश है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनको उनके इन कामों से आपत्ति होती आई है। इसका केवल एक ही कारण है कि वो लोग भी किसी न किसी घोटालों का हिस्सा रह चुके हैं।
अभी हाल ही में एक वाक्या नजर में आया है जिसकी शुरुवात 3 माह पहले ही हुई थी। इसी वर्ष 6 दिसंबर को नीरज कुमार नामक व्यक्ति ने सहसपुर थाने में एक रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। ये रिपोर्ट शिव प्रसाद सेमवाल के खिलाफ लिखी गयी थी। रिपोर्ट में नीरज ने कहा है की शिव प्रसाद सेमवाल के द्वारा मुझे ब्लैकमेल कर पांच लाख की मांग की गयी है। रिपोर्ट के बाद अगले तीन महीने तक पुलिस ने कोई कारवाई नहीं की, और फिर अचानक से पुलिस को तीसरे महीने में अपना फर्ज याद आ गया और बीती सुबह उन्होंने शिव प्रसाद सेमवाल को गिरफ्तार कर लिया। अब मुद्दे की बात ये है की यदि पुलिस ने अपने कार्य के हिसाब से या फिर नियमों के अनुसार शिव प्रसाद सेमवाल को गिरफ्तार किया है तो तीन महीने तक क्यूँ नहीं किया। साथ ही इस मामले का दूसरा पहलु ये भी है कि कहीं पुलिस किसी घोटालेबाज का साथ तो नहीं दे रही ! अक्सर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जब पुलिस का कोई शख्स किसी घोटालेबाज से पैसे लेकर किसी बेगुनाह व्यक्ति पर जुल्म ढाने लगता है।
दरअसल शिव प्रसाद को पुलिस सुबह लेकर गयी तो थी पर उन्हे हिरासत में नहीं लिया गया था। लेकिन पुलिस द्वारा ले जाने की बात सुनते ही वेब मीडिया असोसिएशन के कुछ लोग भागे-भागे सहसपुर थाने में पहुँच गये। बात-चीत करते करते कब शाम के पांच बज गये पता नहीं लगा। इसके बाद पुलिस ने शिव प्रसाद को ऑफिशियली हिरासत में ले लिया। इसमें साफ़-साफ़ पुलिस की चतुराई दिख रही है। क्यूंकि पांच बजे के बाद किसी भी हिरासत में लिए गये व्यक्ति को जमानत नहीं मिल सकती। अब इस सब में सोचने वाली बात यह है कि पुलिस ने आख़िरकार शिव प्रसाद के साथ ये चालाकी क्यूँ दिखाई? क्या पुलिस भी घोटालेबाजों से मिल चुकी है ? शिव प्रसाद की गिरफ्तारी को लेकर और भी कई सारे सवाल उठ रहे हैं। अब देखना यह है कि आगे क्या फैसला होता है ! सच्चाई की जीत होती है या एक बार फिर घोटालेबाजों का कद बढेगा l