बसपा और अकाली दल का पंजाब में हुआ गठबंधन।
पंजाब : शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी का आज हुआ गठबंधन बसपा के पंजाब की राजनीती में वापिस लौटने की एक बड़ी सम्भावना बन सकता है। इस गठबंधन ने बसपा को अपना दशकों से छिटका वोट बैंक वापिस हासिल करने का एक बड़ा अवसर दे दिया है। राज्य में पिछले दो दशकों से बसपा का वोट बैंक जो पहले कांग्रेस और पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी के पाले में चला गया था, उसके वापिस बसपा के पास लौटने के कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं।
अकाली/बसपा गठबंधन को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। चाहे पिछले आंकड़े कुछ भी कह रहे हों, लेकिन इस गठबंधन से राज्य में नए राजनैतिक समीकरण जरूर बनाने शुरू हो जाएंगे, जो कांग्रेस सहित आप और खासतौर पर भाजपा को 2022 के चुनावों में नुकसान पहुंचा सकते हैं। अभी तक के हालातों को अगर देखा जाए तो यह गठबंधन भाजपा को तो पूरी तरह नुकसान पहुंचता हुआ दिख रहा है और यह भी कयास लगाए जा सकते हैं कि बसपा 2022 के विधान सभा चुनावों में भाजपा से ज्यादा सीटें जितने में कामयाब हो जाए। लेकिन बसपा का संकट यह है कि इन 20 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए ऐसे 20 उम्मीदवार कहा से लाएगी।
अकाली दल ने चाहे बसपा को सिर्फ 20 सीटें दी है, लेकिन इन 20 में से 12 सीटें वह हैं, जिन पर पिछली बार भाजपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ चुके है। जिसमे से एक सीट पर वह चुनाव जीती थी और बाकि की 11 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही थी। तय हैं कि इन सभी सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को अकाली दल के वोट भी पड़े थे।
दलित वोट बैंक के लिए जाने जाने वाली बसपा पर अकाली दल ने एक और दांव भी खेला है। जो 20 सीटें अकाली दल ने बसपा को दी हैं, उनमे से 11 सीटें रिजर्व नहीं हैं। इससे साफ़ है कि अकाली दल ने सिर्फ दलित वोट बैंक के आधार पर ही बसपा को सीटें नहीं दी है, उन्हें उम्मीद है कि बसपा जनरल सीट पर भी विरोधी को कड़ा मुकाबला दे सकती है।
कांग्रेस, भाजपा और आप के लिए भी आसान नहीं होगी राह
यह साफ है कांग्रेस को 2022 के चुनावों में एंटी-इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ेगा। बेअदबी, ड्रग्स और माईनिंग के मामलों को लेकर कांग्रेस अपने पिछले वायदों को पूरा नहीं कर पाई है, जिसका लोगों में रोष है। वहीं कैप्टन और सिद्धू की आपसी जंग और विधायकों और मंत्रियों की नाराजगी भी समय-समय पर सामने आती रही है। यह कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
कृषि कानूनों को लेकर भाजपा पंजाब में वैसे ही बैक फुट पर है। जनता और खासतौर पर किसानों में भाजपा को लेकर कृषि कानूनों को लेकर नाराजगी बढ़ी है। वहीं पंजाब भाजपा भी लीडरशिप की कमी से जूझ रही है। भाजपा के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है, जिसे राज्य स्तर पर स्वीकार किया जा सके और अब अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा को बड़ा नुकसान तो हुआ ही है।
वहीं अगर आम आदमी पार्टी की बात की जाए तो कृषि कानूनों को लेकर वह लगातार मुखर रही है। पंजाब में आप का जनाधार भी बढ़ता हुआ दिख रहा है। बावजूद इसके आप अब तक एक भी ऐसा नेता देने में असफल रही है, जिसे वह मुख्यमंत्री के तौर पर जनता के सामने पेश कर सके। इसका खामियाजा आप को 2017 के चुनावों में भी हुआ था। अगर 2022 तक भी आप किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर नहीं पेश कर पाई तो आप के लिए सत्ता पर काबिज होने की राह आसान नहीं होने वाली है।